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गलियों का शहर - मेरी बनारस यात्रा भाग 2/4

  मेरी वाराणसी यात्रा  (यात्रा वृत्तांत) भाग 2/4 - द्वितीय दिन (26 जुलाई 2021) सोमवार ये है बनारस काशी विश्वनाथ मंदिर "दर्शन के पहले" नमामि गंगे खरसिया से काशी की लम्बी किन्तु सुखद यात्रा एवं काशी विराजित बाबा विश्वनाथ की शयन आरती के पश्चात अत्यंत सुखदायी निद्रा और अगले दिन अर्थात 26 जुलाई की तड़के सुबह 5 बजे किसी दारोगा जैसी कड़क आवाज के साथ हमारी निद्रा भंग हुई।  "विक्की,कालू,गोलू... उठो रै... मंदिर ना जाना के" यह आवाज हमारे लिए कोई नई नहीं थी वरन हमें इस आवाज़ की आदत थी और यह कोई और नहीं,यह थे हमारी टोली के कमांडर रॉकी बंसल।जिन्हें हम व्यवहारिकतावश 'गुरजी' अर्थात गुरुजी बुलाते हैं।अलमस्त नींद पसन्द हम लोगों के बीच कड़ाई का सोटा लिए ऐसे कमांडर का होना भी अति आवश्यक था।ऐसी जगहों में अच्छी तरह एवं पूर्ण आनंद के लिए सबसे महत्वपूर्ण है 'समय प्रबंधन' जो कि 'गुरजी' के बिना सम्भव नहीं था।चूँकि 11 लोगों की टोली में हमारे कमरे में ही 3 लोग थे इसलिए गुरजी ने हम तीनों का नाम लेकर पुकारा।ठीक उसी प्रकार अन्य कमरों में भी उनके द्वारा सबको आधे घण्टे में होटल

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